विपरीत परिस्थितियों में विचलित न होना, संकट के समय धर्य रखना, विपत्ति में विवेक न खोना, इन विशेषताओं को शौर्य कहा जाता है। बुराइयों के विरुद्ध प्रतिशोध शौर्य माना गया है। स्वाभिमान, धर्म और राष्ट्रहित के लिए जो कार्य किए जाएं, वह शौर्य की श्रेणी में आते हैं।
इस छोटे से शब्द ‘शौर्य’ के लिए अभ्यास की आवश्यकता है। साहसी को सतत अभ्यास करना पड़ता है। निरंतर अभ्यास ही आपको शौर्यवान बनाएगा। इसीलिए जीवन में निरंतरता का बड़ा महत्व है। निरंतरता के अभ्यास के लिए हमारे साधु-संतों ने एक छोटी-सी विधि बताई है।
सूफी फकीरों ने कहा है – अल्लाह के नाम को जितनी बार लेंगे, उतना मजा बढ़ता जाएगा। साधु-संतों ने इसे ही आनंद कहा है। नाम जप की पुनरावृत्ति हमारे पूरे अस्तित्व को प्रेम से लबालब कर देती है।
हर सांस जब नाम से जुड़ जाती है तो हर कृत्य शौर्यपूर्ण होता है। इसलिए जिन्हें संसार में साहसिक कार्य करना हो, उन्हें अपने भीतर निरंतर जप का अभ्यास बनाए रखना चाहिए। लेकिन ध्यान रखें, इस अभ्यास को यांत्रिक न बनाएं। इसे श्रद्धा और निष्ठा से जिया जाए।
अभ्यास इस तरह से हो, जैसे हम नहीं कर रहे, वह हो रहा है। लगातार इस बात को अपने भीतर उतारें। नाम जप का काम प्रथम हो और करने वाले हम द्वितीय। जब ऐसा होने लगता है तो पूरा व्यक्तित्व शौर्यपूर्ण हो जाता है। हर काम दबंगता के साथ पूरा होगा, क्योंकि हम निरंतरता के अर्थ समझ चुके होंगे।
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