शास्त्रों में दान के कई नियम और तरीके बताए गए हैं। मनुस्मृति के अनुसार जो मनुष्य परिजन, सहारे की आशा रखने वाले करीबी रिश्तेदार तथा स्वयं पर आश्रित लोगों की दुख-तकलीफों को नजरअंदाज कर, दान-पुण्य करता है, वह दान जीते हुए तथा मृत्युपरांत भी उसके लिए दुखदाई ही होता है। दान के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। कब और किस स्थिति में किन वस्तुओं का दान करना चाहिए- दान देने वाला पूर्व दिशा की ओर मुख कर दान दे और लेने वाला उत्तर दिशा की ओर मुख कर ग्रहण करे, तो दानदाता की आयु में वृद्धि होती है तथा लेने वाली की आयु कम नहीं होती। तिल, अक्षत, कुश और जल हाथ में लेकर ही दान देना चाहिए। पितरों के निमित्त दान करते समय तिल एवं देवताओं के लिए अक्षत अवश्य होना चाहिए। जल एवं कुश हर स्थिति में जरूरी है। जिसे दान देना है, उसके पास स्वयं जाकर देना उत्तम माना गया है, अपने यहां बुलाकर दिया गया दान मध्यम तथा मांगने पर दिया गया दान अधम माना गया है। किसी से सेवा कराने के बाद दिया गया दान निष्फल होता है। रात के समय दान नहीं देना चाहिए, किंतु चंद्र-सूर्यग्रहण के समय, विवाह,खलिहान-यज्ञ, जन्म एवं मृतक कर्म का दान रात में भी कर सकते हैं। दक्षिणा, विद्या, कन्या, दीपक, अन्न तथा आश्रय दान भी रात में कर सकते हैं। गौ, सोना, चांदी, रत्न, विद्या, तिल, कन्या, हाथी, अश्व, शैया, वस्त्र, भूमि, अन्न, दूध, छत्र तथा गृह इन सोलह वस्तुओं के दान को महादान कहते हैं।
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