व्यावहारिक जीवन में सुख और आनंद के लिए पद, प्रतिष्ठा और सम्मान और ऐश्वर्य अहम माने जाते हैं। किंतु ये सभी एक साथ या समान रूप से नहीं मिलते। तो क्या कोई ऐसा तरीका हो संभव है, जो स्थायी और अपार सुख दे सके?
धर्मग्रंथों के मुताबिक सभी सुख और आनंद पाने का एक सरल उपाय है और वह है – भक्ति। जी हां, भगवान की भक्ति भगवान के स्मरण में लगाया मन कुछ ही पलों में ऐसा सुख, खुशी और आनंद दे देता है, जिनके आगे तमाम भौतिक सुख भी कमतर लगते हैं।
ऐसी सुखदायी भक्ति के लिये भाव जरूरी है। क्योंकि भक्ति में भाव अहम माना गया है। इस संबंध में श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि -
भूर्यप्यभक्तोपहृतं न मे तोषाय कल्पते।
गन्धो धूप: सुमनसो दीपोन्नाद्यं च किं पुन:।।
जिसका सरल शब्दों अर्थ है कि मुझे कोई अनेक तरह की भोग सामग्रियां चढ़ाएं तो मैं उनसे संतुष्ट नहीं हो पाता, बल्कि कोई भक्ति भाव से मात्र जल अर्पित कर दे तो प्रसन्न हो जाता हूं और अगर कोई इसी भावना से गंध, फूल, धूप, दीप और भोग लगाए तो फिर वह मेरा कृपा पात्र ही हो जाता है।
इस बात से यही सूत्र मिलता है कि सांसारिक जीवन में सुकून से जीवन जीने के लिए कर्म के साथ भाव भरी भक्ति भी एक बेहतर उपाय साबित। क्योंकि माना जाता है कि इससे मिली शांति धन से पाई सुख-सुविधाओं से भी नहीं मिल पाती।
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