Thursday, June 21, 2012

दस गुना ज्यादा ताकत होती है इसमें...

जीवन के लिए तीन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है भोजन। भोजन से ही हमें जीने के लिए शक्ति और ऊर्जा मिलती है। खाने के लिए कई पदार्थ आसानी से उपलब्ध हैं। सभी खाद्य पदार्थों को मिलने वाली ऊर्जा और बल भी अलग-अलग होता है। किसी चीज में कम बल होता है तो किसी में ज्यादा। आचार्य चाणक्य ने बताया है किन चीजों में कितना बल रहता है-

अन्नाद्दशगुणं पिष्टं पिष्टाद्दशगुणं पय:।

पयसोऽष्टगुणं मांसं मांसाद्दशगुणं घृतम्।

इस श्लोक का अर्थ है कि खड़े अन्न से दस गुना अधिक बल पिसे हुए आटे में होते हैं। पिसे हुए आटे से भी दस गुना अधिक बल दूध में रहता है। दूध से भी आठ गुना अधिक बल मांस में रहता है और मांस से दस गुना अधिक बल घी में रहता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें खड़े अन्न की अपेक्षा पिसे हुए अन्न के आटे दस गुना अधिक शक्ति होती है। अत: पिसे हुए आटे का ज्यादा से ज्यादा खाने में प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही अन्न के आटे से भी दस गुना अधिक बल दूध में होता है। इसी लिए प्रतिदिन दूध पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक रहता है। दूध से भी दस गुना अधिक बल मांस में होता है। जबकि मांस खाने से कहीं अधिक अच्छा है कि खाने में अधिक से अधिक घी का प्रयोग किया जाए। क्योंकि घी में मांस से भी दस गुना अधिक बल रहता है। घी अधिक पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है।

आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई चाणक्य नीतियां आज भी हमारे लिए काफी कारगर है। इन नीतियों को जीवन में उतारने पर व्यक्ति सभी परेशानियों पर विजय प्राप्त करता है और लक्ष्य तक पहुंच जाता है। 




1. बाहुवीर्यबलं राज्ञो ब्राह्मणो ब्रह्मविद् बली। रूप-यौवन-माधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम।। किसी भी राजा की शक्ति उसका स्वयं का बाहुबल है। ब्राह्मणों की ताकत उनका ज्ञान होता है। स्त्रियों की ताकत उनका सौंदर्य, यौवन और उनकी मीठी वाणी होती है।
2. कैसी लड़की से विवाह करना चाहिए और कैसी लड़की से नहीं, इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि- वरयेत् कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम। रूपशीलां न नीचस्य विवाह: सदृशे कुले।। आचार्य चाणक्य कहते हैं समझदार मनुष्य वही है जो विवाह के लिए नारी की बाहरी सुंदरता न देखते हुए मन की सुंदरता देखे। यदि कोई उच्च कुल या अच्छे परिवार की कुरूप कन्या सुंस्कारी हो तो उससे विवाह कर लेना चाहिए। जबकि कोई सुंदर कन्या यदि संस्कारी न हो, अधार्मिक हो, नीच कुल या जिसके परिवार वाले अच्छे न हो, जिसका चरित्र ठीक न हो तो उससे किसी भी परिस्थिति में विवाह नहीं करना चाहिए। विवाह हमेशा समान कुल में ही शुभ रहता है।
3. आचार्य चाणक्य कहते हैं जब भी शरीर पर तेल मालिश की जाए, शमशान से आने के बाद, हजामत बनवाने के बाद और स्त्री प्रसंग के बाद स्नान करना अनिवार्य माना गया है।
4. अनल विप्र गुरु धेनु पुनि, कन्या कुंवारी देत। बालक के अरु वृद्ध के, पग न लगावहु येत।। अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कुमारी कन्या, वृद्ध और बालक, इन सातों को कभी भी हमारे पैर नहीं लगना चाहिए।
5. द्वारपाल, सेवक, पथिक, समय क्षुधातुर पाय। भंडारी विद्यारथी, सोवत सात जगाय।। द्वारपाल, नौकर, राहगीर, भूखा व्यक्ति, भंडारी, विद्यार्थी और डरे हुए व्यक्ति को नींद में से तुरंत उठा देना चाहिए।
6. लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जाए... इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि किसी भी कार्य की शुरूआत से पहले हमें खुद से तीन सवाल पूछने चाहिए। ये तीन सवाल ही लक्ष्य प्राप्ति में आ रही बाधाओं को पार करने में मददगार साबित होंगे। इसके साथ ही ये कार्य की सफलता भी सुनिश्चित करेंगे। ये तीन प्रश्न हैं- - मैं ये क्यों कर रहा हूं? - मेरे द्वारा किए जा रहे इस कार्य के परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? - मैं जो कार्य प्रारंभ करने जा रहा हूं, क्या मैं सफल हो सकूंगा?
7. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि... लुब्धमर्थेन गृöीयात् स्तब्धमंजलिकर्मणा। मूर्खं छन्दानुवृत्त्या च यथार्थत्वेन पण्डितम।। जो व्यक्ति धन का लालची है उसे पैसा देकर, घमंडी या अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी बात मान कर और विद्वान व्यक्ति को सच से वश में किया जा सकता है।
8. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि- त्यजेद्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत। त्यजेत्क्रोधमुखं भार्यां नि:स्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत।। जिस धर्म में दया का उपदेश न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए। जो गुरु ज्ञानहीन हो उसे त्याग देना चाहिए। यदि पत्नी हमेशा क्रोधित ही रहती है तो उसे छोड़ देना चाहिए और जो भाई-बहन स्नेहहीन हो उन्हें भी त्याग देना चाहिए।
9. जीवन में सफलताएं प्राप्त करने के लिए कई बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य द्वारा कई सटीक सूत्र बताए गए हैं। इन्हीं से एक सूत्र ये है सर्प, नृप अथवा राजा, शेर, डंक मारने वाले जीव, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्ते और मूर्ख, इन सातों को नींद से नहीं जगाना चाहिए, ये सो रहे हैं तो इन्हें इसी अवस्था में रहने देना ही लाभदायक है।
10. शारीरिक बीमारियों का उपचार उचित दवाइयों से किया जा सकता है लेकिन मानसिक या वैचारिक बीमारियों का उपचार किसी दवाई से होना संभव नहीं है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने सबसे बुरी बीमारी बताई है लोभ। लोभ यानि लालच। जिस व्यक्ति के मन में लालच जाग जाता है वह निश्चित ही पतन की ओर दौड़ने लगता है। लालच एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज आसानी से नहीं हो पाता। इसी वजह से आचार्य ने इसे सबसे बड़ी बीमारी बताया है।

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