Tuesday, July 24, 2012

पुत्र ही क्यों देता है मुखाग्नि?

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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया है कि मृत्यु एक अटल सत्य है। जिसने जन्म लिया है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त होगी। आत्मा अमर है और वह निश्चित समय के अलग-अलग शरीर धारण करती है। जब जिस शरीर का समय पूर्ण हो जाता है आत्मा उसका त्याग कर देती है। इसे ही मृत्यु कहा जाता है। हिंदू धर्म में मृत्यु के संबंध में एक महत्वपूर्ण नियम या परंपरा यह है कि मृत शरीर को मुखाग्नि पुत्र ही देता है। यदि मृत व्यक्ति का पुत्र है तो मुखाग्नि उसे ही देना है, ऐसा विधान है। मृतक चाहे स्त्री हो या पुरुष अंतिम क्रिया पुत्र की संपन्न करता है। इस संबंध में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पुत नामक नर्क से बचाता है अर्थात् पुत्र के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसी मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है। पुत्र माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा गया है।

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