खासतौर पर शिव के निराकार स्वरूप शिवलिंग पूजा समस्त सांसारिक कामनाओं को पूरा करने और दु:ख-संताप का अंत करने वाली बताई गई है। यही नहीं शिवलिंग का दर्शन मात्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला बताया गया है।
शिव पुराण में शिवलिंग प्राकट्य के प्रसंग भी निराकार स्वरूप शिवलिंग की शक्तियों और उपासना का महत्व ही उजागर नहीं करते, बल्कि घट-घट में बसे शिव स्वरूप की अपार महिमा बताते हैं। इसी कारण शिव ही नहीं उनके अनेक अवतार भी धर्म परंपराओं में संकटमोचक माने गए हैं, जिनमें हनुमान, भैरव लोक आदि प्रसिद्ध है।
शिवलिंग की ऐसी ही महिमा बताते हुए एक रोचक प्रसंग शिव पुराण में आया है, जिसमें शिव के एक अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का रहस्य भी है।एक बार दो असुरों विदल और उत्पल ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पाया कि उनकी किसी पुरुष के हाथों मृत्यु न होगी। इसके बाद दोनों असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें बुरी तरह से हरा दिया। पराजित देवगणों ने ब्रह्मदेव के सामने अपना दु:ख प्रगट किया। तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं को यह बताया कि शिवलीला से दोनों असुरों का देवी के हाथों अंत होगा। इसी शिवलीला के चलते नारद ने दोनों दैत्यों के आगे पार्वती की सुंदरता का बखान किया। यह सुनकर दोनों उस स्थान पर पहुंचे जहां माता पार्वती गेंद से खेल रही थी। उनके रूप से मोहित दोनों दुष्ट दैत्य वेश बदलकर देवी के करीब पहुंचे। किंतु महादेव ने उनकी आंखों को देखकर यह जान लिया कि वे दैत्य हैं। शिव ने देवी की ओर संकेत किया। देवी शिव का इशारा समझ गईं और उन्होनें बिना देरी किए अपनी गेंद से दोनों राक्षसों पर घातक प्रहार किया, जिससे चोट खाकर विदल और उत्पल नामक दैत्य धराशायी होकर मृत्यु को प्राप्त हुए और उस गेंद ने शिवलिंग रूप ले लिया। शिवपुराण के मुताबिक यही शिवलिंग गेंद यानी कन्दुक के नाम से कन्दुकेश्वर लिंग के रूप में काशी में स्थित है, जो सभी बुरी वृत्तियों का नाशक व समस्त सांसारिक सुख और मोक्ष देने वाला माना गया है।
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