सुबह से लेकर रात तक व्यस्त रहना आजकल मजबूरी और फैशन दोनों हो गया है। कुछ लोगों के जीवन में काम तो इस प्रकार हो गए हैं कि कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेते। फिर महानगरों में तो आवागमन में ही समय का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। शरीर की दौड़-भाग के कारण मनुष्य चिड़चिड़ा और उदास होने लगता है। बाहर से जो लोग उद्विग्न नजर आते हैं, दरअसल वे भीतर से उदास हैं।
ऐसे में शांतिदायक स्थितियां बाहर से जीवन में आ जाएं, ऐसी उम्मीद करनी बेकार है। तब क्या किया जाए? कामकाज छोड़ना नहीं है। चौबीस घंटे की अवधि को बढ़ाया नहीं जा सकता। नाम और दाम कमाना ही है। इसके लिए लगातार प्रकृति से जुड़ने का प्रयास करें। विश्व वानिकी दिवस इसलिए नहीं मनाया जाता कि केवल वन को बचाया जाए।
दरअसल मनुष्य को बचाने के लिए भी इस दिन संकल्प लिया जाना चाहिए। सूरज को उगता हुआ देखें। उसके ढलने पर चंद्रमा के आगमन पर नजर रखें। परिंदों की हलचल पर नजर डालें। पशुओं में खासकर गाय की गतिविधि को नोटिस करें। नदी को बहता हुआ देखें और रुके हुए पहाड़ पर थोड़ा अपने चित्त को टिकाएं।
तब आप पाएंगे कि प्रकृति वो पगडंडी है, जो परमात्मा तक ले जाती है। प्रतिदिन प्रकृति से जुड़ने का अर्थ है, उस मार्ग की साफ-सफाई करना, जो उस दिव्य शक्ति तक पहुंचने का राजमार्ग है। यह रास्ता ही ऐसा है कि हमारी सुविधा की दृष्टि से पगडंडी में बदल जाएगा, कभी फुटपाथ में बदल जाएगा और कभी राजमार्ग-सा दिखेगा। इसलिए आदत बना लें कि थोड़ी देर पशु-पक्षी, नदी, पहाड़, पेड़-पौधे इत्यादि पर भी टिकें।
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