Sunday, June 8, 2014

हनुमानजी के सामने शनिदेव बन गए थे स्त्री



हनुमानजी की पूजा से शनिदेव के कोप का सामना नहीं करना पड़ता है। कई लोगों के मन यह जिज्ञासा रहती है कि हनुमानजी की पूजा से शनि के दोष क्यों दूर होते हैं। हनुमानजी और शनिदेव से जुड़े कई प्रसंग शास्त्रों में बताए गए हैं। इन्हीं प्रसंगों में इस प्रश्न का उत्तर है कि हनुमानजी की पूजा से शनि क्यों प्रसन्न होते हैं। यहां एक ऐसे प्रसंग की जानकारी दी जा रही है, जहां हनुमानजी के सामने शनिदेव स्त्री बन गए थे। इस कथा का प्रमाण गुजरात में भावनगर के सारंगपुर में स्थित है। यहां हनुमानजी का मंदिर है जो कि सैकड़ों साल पुराना है। इस मंदिर में कष्टभंजन हनुमानजी विराजमान है। आगे दिए गए फोटो में पढ़िए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें और जानिए शनिदेव ने हनुमानजी के सामने स्त्री का रूप क्यों धारण किया था... कष्टभंजन हनुमानजी सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं और उन्हें महाराजाधिराज के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर बहुत चमत्कारी है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यदि कुंडली में शनि दोष हो तो वह भी कष्टभंजन के दर्शन से दूर हो जाता है। इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है। इस मूर्ति की खास बात यह है कि यहां हनुमानजी के पैरों में स्त्री रूप में शनिदेव स्थित हैं। सभी जानते हैं कि हनुमानजी स्त्रियों के प्रति विशेष आदर और सम्मान का भाव रखते हैं। ऐसे में उनके चरणों में किसी स्त्री का होना आश्यर्च की बात है। इस प्रतिमा के संबंध में एक कथा प्रचलित है। सारंगपुर में कष्टभंजन हनुमानजी के मंदिर का भवन काफी विशाल है। यह किसी किले के समान दिखाई देता है। मंदिर की सुंदरता और भव्यता देखते ही बनती है। हनुमानजी की प्रतिमा के आसपास वानर सेना दिखाई देती है और पैरों में स्त्री रूप में शनिदेव भी स्थित हैं। शनिदेव को हनुमानजी के सामने स्त्री रूप क्यों लेना पड़ा, इस संबंध में जो कथा प्रचलित है, वह इस प्रकार है... प्राचीन मान्यताओं के अनुसार एक समय शनिदेव का प्रकोप काफी बढ़ गया था। शनि के कोप से आम जनता भयंकर कष्टों का सामना कर रही थी। ऐसे में लोगों ने हनुमानजी से प्रार्थना की कि वे शनिदेव के कोप को शांत करें। बजरंग बली अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं और उस समय श्रद्धालुओं की प्रार्थना सुनकर वे शनि पर क्रोधित हो गए। जब शनिदेव को यह बात मालूम हुई कि हनुमानजी उन पर क्रोधित हैं और युद्ध करने के लिए उनकी ओर ही आ रहे हैं तो वे बहुत भयभीत हो गए। भयभीत शनिदेव ने हनुमानजी से बचने के लिए स्त्री रूप धारण कर लिया। शनिदेव जानते थे कि हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और वे स्त्रियों पर हाथ नहीं उठाते हैं। हनुमानजी शनिदेव के सामने पहुंच गए, शनि स्त्री रूप में थे। तब शनि ने हनुमानजी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की और भक्तों पर से शनि का प्रकोप हटा लिया। तभी से हनुमानजी के भक्तों पर शनिदेव की तिरछी नजर का प्रकोप नहीं होता है। शनि दोषों से मुक्ति हेतु कष्टभंजन हनुमानजी के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। आगे जानिए हनुमानजी के कुछ ऐसे उपाय जो आप अपने घर पर या घर के आसपास किसी भी हनुमान मंदिर में कर सकते हैं... - हनुमानजी को प्रसन्न करने हेतु शनिवार को सूर्योदय के पहले यह उपाय करें। पीपल के ग्यारह पत्तें लेकर उन पर श्रीराम नाम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर हनुमानजी को पहना दें। इस प्रयोग को गुप्त रखें। - किसी भी शुभ मुहूर्त में या मंगलवार या शनिवार को हनुमान मंदिर जाएं और अपने साथ नारियल लेकर जाएं। मंदिर में नारियल को अपने सिर पर सात बार वार लें। इसके बाद यह नारियल हनुमानजी के सामने फोड़ दें। इस उपाय से आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी। हर मंगलवार और शनिवार को किसी भी हनुमान मंदिर में 11 काली उड़द के दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद अर्पित करें। साथ ही सुंदरकांड का पाठ करें या समय अभाव हो तो हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमानजी के पूजन में पवित्रता का पूरा ध्यान रखें। किसी भी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से दूर रहें। घर के बड़े-बुजूर्गों सहित अन्य वृद्धजनों का सम्मान करें, उनका दिल न दुखाए।
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मां के पेट में क्या सोचता है शिशु

 किसी भी स्त्री के लिए वह क्षण बहुत गर्व का होता है, जब वह मां बनती है। माता के गर्भ में नौ महीनों तक शिशु का पालन-पोषण होता है। मेडिकल साइंस के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता भोजन के रूप में जो भी ग्रहण करती है, उसी का अंश गर्भस्थ शिशु को भी मिलता है। यही बात हिंदू धर्मग्रंथों में भी बताई गई है। गरुड़ पुराण में शिशु के माता के गर्भ में आने से लेकर जन्म लेने तक का स्पष्ट विवरण दिया गया है। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त और वाहन गरुड़ को जीवन-मृत्यु, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, मोक्ष पाने के उपाय आदि के बारे में विस्तार से बताया है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि शिशु को माता के गर्भ में क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ते हैं और वह किस प्रकार भगवान का स्मरण करता है। गर्भस्थ शिशु के मन में क्या-क्या विचार आते हैं, ये भी गरुड़ पुराण में बताया गया है। - गरुड़ पुराण के अनुसार, स्त्रियों में ऋतुकाल आने से संतान की उत्पत्ति होती है। ऋतुकाल में तीन दिन स्त्रियां अपवित्र रहती हैं। ऋतुकाल में पहले दिन स्त्री चांडाली के समान, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के समान तथा तीसरे दिन धोबिन के समान रहती है। इन तीन दिनों में नरक से आए हुए जीव उत्पन्न होते हैं। - ईश्वर से प्रेरित हुए कर्मों से शरीर धारण करने के लिए पुरुष के वीर्य-बिंदु के माध्यम से स्त्री के गर्भ में जीव प्रवेश करता है। एक रात्रि का जीव कोद (सूक्ष्म कण), पांच रात्रि का जीव बुदबुद (बुलबुले) तथा दस दिन का जीवन बदरीफल (बेर) के समान होता है। इसके बाद वह एक मांस- पिंड का आकार लेता हुआ अंडे के समान हो जाता है। - एक महीने में मस्तक, दूसरे महीने में हाथ आदि अंगों की रचना होती है। तीसरे महीने में नाखून, रोम, हड्डी, लिंग, नाक, कान, मुंह आदि अंग बन जाते हैं। चौथे महीने में त्वचा, मांस, रक्त, मेद, मज्जा का निर्माण होता है। पांचवें महीने में शिशु को भूख-प्यास लगने लगती है। छठे महीने में शिशु गर्भ की झिल्ली से ढककर माता के गर्भ में घूमने लगता है। - माता द्वारा खाए गए अन्न आदि से बढ़ता हुआ वह शिशु विष्ठा, मूत्र आदि के स्थान तथा जहां अनेक जीवों की उत्पत्ति होती है, ऐसे स्थान पर सोता है। वहां कृमियों के काटने से उसके सभी अंग कष्ट पाते हैं। इससे वह बार-बार बेहोश भी होता है। माता जो भी कड़वा, तीखा, रूखा, कसैला भोजन करती है, उसके स्पर्श से शिशु के कोमल अंगों को बहुत कष्ट होता है। - इसके बाद शिशु का मस्तक नीचे की ओर तथा पैर ऊपर की ओर हो जाते हैं। वह इधर-उधर हिल नहीं सकता। जिस प्रकार से पिंजरे में पक्षी रहता है, उसी प्रकार शिशु माता के गर्भ में रहता है। यहां शिशु सात धातुओं से बंधा हुआ भयभीत होकर हाथ जोड़ ईश्वर की (जिसने उसे गर्भ में स्थापित किया है) स्तुति करने लगता है। - सातवें महीने में उसे ज्ञान प्राप्ति होती है और वह सोचता है कि इस गर्भ से बाहर जाने पर कहीं ईश्वर को न भूल जाऊं। ऐसा सोचकर वह दुखी होता है और इधर-उधर घूमने लगता है। सातवें महीने में शिशु अत्यंत दुख से वैराग्य मानसिकता के साथ ईश्वर की स्तुति इस प्रकार करता है- लक्ष्मी के पति, जगदाधार, संसार को पालने वाले और जो तेरी शरण में आए, उसका पालन करने वाले भगवान विष्णु का शरणागत होता हूं। - गर्भस्थ शिशु भगवान विष्णु का स्मरण करता हुआ सोचता है कि मोहित होकर देहादि में और अभिमान कर जन्म-मरण को प्राप्त होता हूं। मैंने परिवार के लिए शुभ काम किए, वे लोग तो खा-पीकर चले गए। मैं अकेला दु:ख भोग रहा हूं। इस योनि से अलग हो तुम्हारे चरणों का स्मरण कर फिर ऐसे उपाय करूंगा, जिससे मैं मुक्ति को प्राप्त कर सकूं। - फिर गर्भस्थ शिशु सोचता है मैं महादुखी विष्ठा व मूत्र के कुएं में हूं और भूख से व्याकुल इस गर्भ से अलग होने की इच्छा करता हूं। हे भगवन्! मुझे कब बाहर निकालोगे। सभी पर दया करने वाले ईश्वर ने मुझे ये ज्ञान दिया है, उस ईश्वर की मैं शरण में जाता हूं। इसलिए मेरा पुन: जन्म-मरण होना उचित नहीं है। - गरुड़ पुराण के अनुसार, फिर माता के गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि मैं इस गर्भ से अलग होने की इच्छा नहीं करता, क्योंकि बाहर जाने से पापकर्म करने पड़ते हैं, जिससे नरकादि प्राप्त होते हैं। इस कारण बड़े दुख से व्याकुल हूं, फिर भी दुखरहित हो आपके चरणों का आश्रय लेकर मैं आत्मा का संसार से उद्धार करूंगा। - इस प्रकार गर्भ में विचार कर शिशु दस महीने तक स्तुति करता हुआ नीचे मुख से प्रसूति के समय वायु से तत्काल बाहर निकलता है। प्रसूति की हवा से उसी समय शिशु सांस लेने लगता है तथा अब उसे किसी बात का ज्ञान भी नहीं रहता। गर्भ से अलग होकर वह ज्ञानरहित हो जाता है। इसी कारण जन्म के समय वह रोता है। - गरुड़ पुराण के अनुसार जिस प्रकार बुद्धि गर्भ में, रोगादि में, श्मशान में, पुराण आदि सुनने में रहती है, वैसी बुद्धि सदा रहे। तब इस संसार के बंधन से कौन नहीं छूट सकता। जिस समय शिशु कर्म योग द्वारा गर्भ से बाहर आता है, उस समय भगवान विष्णु की माया से वह मोहित हो जाता है। माया से मोहित वह कुछ भी नहीं बोल सकता और बाल्यावस्था के दुख भी पराधीन होकर भोगता है।

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यमलोक कितने दिनों बाद आत्मा पहुंचती है

 पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, उसके प्राण हरने देवदूत आते हैं और उसे स्वर्ग ले जाते हैं, जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसके प्राण हरने यमदूत आते हैं और उसे नरक ले जाते हैं, लेकिन उसके पहले उस जीवात्मा को यमलोक ले जाया जाता है, जहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है। इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह प्राण पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेते हैं। जानिए यमदूत किस प्रकार किसी मनुष्य के प्राण निकालते हैं और उसे किस प्रकार यातना देते हुए यमलोक तक ले जाते हैं .गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोलने की इच्छा होने पर भी बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्यदृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं और वह जड़ अवस्था में हो जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगते हैं और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं। - उस समय दो यमदूत आते हैं। वे बड़ी भयानक क्रोधवाली आंखों वाले होते हैं। उनके हाथ में पाशदंड रहता है। वे अपने दांतों से कट-कट करते हैं। यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं। उनका मुंह बहुत भयानक होता है, नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। यमराज के दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मल-मूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है, जिसे यमदूत पकड़ लेते हैं। - यमराज के दूत उस शरीर को पकड़कर पाश गले में बांधकर उसी क्षण यमलोक ले जाते हैं, जैसे- राजा के सैनिक अपराध करने वाले को पकड़ कर ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बार-बार बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं। - इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी हो अपने किए हुए पापों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है और वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठता है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। फिर उठ कर चलने लगता है। इस प्रकार यमदूत उस पापी को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है चार कोस यानी 13-16 कि.मी)। वहां यमदूत पापी जीव को थोड़ी ही देर में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसेभयानक यातना देते हैं। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ पुन: अपने घर आती है। - घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा करती है परंतु यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी को तृप्ति नहीं होती क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से युक्त होकर वह जीव यमलोक जाता है। - इसके बाद पापात्मा के पुत्र आदि परिजन यदि पिंडदान नहीं देते हैं, तो वह प्रेत रूप हो जाती है और लंबे समय तक निर्जन वन में रहती है। इतना समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना उसे मनुष्य शरीर नहीं प्राप्त होता। गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह कोपुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत खाता है। नौवें दिन पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बनता है, दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है। - गरुड़ पुराण के अनुसार शव को जलाने के बाद पिंड से हाथ के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल को भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है। ऐसे पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेत ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है। - यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन २०० योजन चलता है। इस प्रकार वह 47 दिन लगातार चलकर यमलोक पहुंचता है। इस प्रकार मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है। - इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार हंै- सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति। इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद आगे यमराजपुरी आती है। पापी प्राणी यम, पाश में बंधे हुए मार्ग में हाहाकार करते हुए अपने घर को छोड़कर यमराज पुरी जाते हैं।


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