सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए शास्त्रों में कई महत्वपूर्ण सूत्र और परंपराएं बताई गई हैं। इन सूत्रों का पालन करने पर हमारा जीवन सुखी और समृद्धिशाली हो सकता है। व्यक्ति की किसी भी प्रकार की कमजोरियां या परेशानियां सताती नहीं हैं। कुछ बातें ज्ञान की हैं जिन्हें हमेशा ध्यान रखना हमारे लिए फायदेमंद रहता है।
गरुण पुराण एक ऐसा ग्रंथ है
जिसमें जीवन और मृत्यु के रहस्यों का उल्लेख किया गया है। हमारे किन कर्मों का क्या फल हमें प्राप्त होता है, यह गरुण पुराण में बताया गया है। इसी पुराण में चार बातें या काम ऐसे बताए गए हैं जिन्हें अधूरा छोडऩा नुकसानदायक हो सकता है। इनमें से कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें शेष छोड़ दिया जाए तो संकट तक खड़ा हो सकता है।
चार काम हैं जिन्हें बीच में नहीं छोडऩा चाहिए-
गरुण पुराण के अनुसार ऋण या उधार लिया गया पैसा किसी भी स्थिति में पूरा लौटा देना चाहिए। यदि ऋण पूरा नहीं उतारा जाता है तो वह पुन: ब्याज के कारण बढऩे लगता है। यदि किसी व्यक्ति से ऋण लिया जाए और पूरा न चुकाया जाए तो रिश्तों दरार पडऩे की पूरी संभावनाएं रहती हैं। अत: ऐसी स्थिति से बचने के लिए ऋण का शत-प्रतिशत निपटारा जल्दी से जल्दी कर देना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो उसे दवाइयों की मदद से और आवश्यक परहेज से रोग को जड़ से मिटा देना चाहिए। जो लोग पूरी तरह स्वस्थ न होते हुए भी दवाइयां लेना बंद कर देते हैं तो उन्हें भविष्य में पुन: बीमारी हो सकती है। सामान्यत: बीमारी का पुन: लौटना जान का खतरा ही होता है। अत: बीमारी की अवस्था में दवाइयां लेते रहना चाहिए, बीमारी के कीटाणुओं को जीवित नहीं रहने देना चाहिए। यदि आपका कोई शत्रु है और वह बार-बार प्रयास करने के बाद भी शत्रुता समाप्त नहीं कर रहा है तो उसे किसी भी तरह शांत कर देना चाहिए। क्योंकि शत्रु हमेशा ही हमारा अहित करने की योजनाएं बनाते रहेंगे और शत्रु बढ़ाते रहेंगे। शत्रुता का नाश करने पर ही जीवन से भय का नाश हो सकता है। यदि कहीं आग लग रही है तो आग को भी पूरी तरह बुझा देना चाहिए। अन्यथा छोटी सी चिंगारी भी पुन: बड़ी आग में बदल सकती है और जान और माल को नुकसान पहुंचा सकती है। गरुण पुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मनोवांछित फल प्राप्त नहीं कर पाता है तो वह अज्ञानता वश क्रोधित होता है। जब व्यक्ति क्रोधित होता है तो उससे चिन्ता उत्पन्न होती है। चिंतित रहने वाले व्यक्ति के मन में काम और क्रोध अधिक बढ़ते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति कई बार अनैतिक कर्म कर सकता है। अत: हमें हर परिस्थिति में संतोषपूर्वक जीवन व्यतित करना चाहिए। जो व्यक्ति कामवासना में लिप्त रहते हैं वे स्वयं के स्वार्थों की पूर्ति के लिए अन्य कामी व्यक्ति के साथ विरोध करते हैं। ऐसे लोग दूसरों के नाश के लिए सदैव मनन करते रहते हैं। जब एक दुर्बल कामी पुरुष दूसरे बलवान कामी से बैर करता है तो वह अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार एक हाथी छोटे-छोटे जीवों नष्ट कर देता है ठीक इसी प्रकार बलवान कामी पुरुष निर्बल कामी पुरुष के प्राणों का हरण कर लेता है। जो व्यक्ति मूर्ख होता है वह इंसानियत का नाश करने में लगा रहता है। दूसरों को अपनी मूर्खतापूर्ण बातों से ठेस पहुंचाने का प्रयत्न करता है। ऐसे मूर्ख लोग भयंकर पापी होते हैं। गरुण पुराण के अनुसार इन लोगों को युवा अवस्था में दुखों का सामना करना पड़ता है और इनका बुढ़ापा भी गंभीर बीमारियों के साथ गुजरता है। मूर्ख व्यक्ति की आत्मा देह त्याग के बाद नरक में जाती है। कई प्रकार यातनाओं को झेलने के बाद वह आत्मा पुन: धरती पर देह धारण करती है। यह चक्र अनवरत चलता रहता है। मूर्ख व्यक्ति की आत्मा को वैराग्य प्राप्त नहीं हो पाता है और ना ही ऐसे लोग भगवान की भक्ति कर पाते हैं।
Spiritual counseling for leading a spiritual way of life.
गरुण पुराण एक ऐसा ग्रंथ है
जिसमें जीवन और मृत्यु के रहस्यों का उल्लेख किया गया है। हमारे किन कर्मों का क्या फल हमें प्राप्त होता है, यह गरुण पुराण में बताया गया है। इसी पुराण में चार बातें या काम ऐसे बताए गए हैं जिन्हें अधूरा छोडऩा नुकसानदायक हो सकता है। इनमें से कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें शेष छोड़ दिया जाए तो संकट तक खड़ा हो सकता है।
चार काम हैं जिन्हें बीच में नहीं छोडऩा चाहिए-
गरुण पुराण के अनुसार ऋण या उधार लिया गया पैसा किसी भी स्थिति में पूरा लौटा देना चाहिए। यदि ऋण पूरा नहीं उतारा जाता है तो वह पुन: ब्याज के कारण बढऩे लगता है। यदि किसी व्यक्ति से ऋण लिया जाए और पूरा न चुकाया जाए तो रिश्तों दरार पडऩे की पूरी संभावनाएं रहती हैं। अत: ऐसी स्थिति से बचने के लिए ऋण का शत-प्रतिशत निपटारा जल्दी से जल्दी कर देना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो उसे दवाइयों की मदद से और आवश्यक परहेज से रोग को जड़ से मिटा देना चाहिए। जो लोग पूरी तरह स्वस्थ न होते हुए भी दवाइयां लेना बंद कर देते हैं तो उन्हें भविष्य में पुन: बीमारी हो सकती है। सामान्यत: बीमारी का पुन: लौटना जान का खतरा ही होता है। अत: बीमारी की अवस्था में दवाइयां लेते रहना चाहिए, बीमारी के कीटाणुओं को जीवित नहीं रहने देना चाहिए। यदि आपका कोई शत्रु है और वह बार-बार प्रयास करने के बाद भी शत्रुता समाप्त नहीं कर रहा है तो उसे किसी भी तरह शांत कर देना चाहिए। क्योंकि शत्रु हमेशा ही हमारा अहित करने की योजनाएं बनाते रहेंगे और शत्रु बढ़ाते रहेंगे। शत्रुता का नाश करने पर ही जीवन से भय का नाश हो सकता है। यदि कहीं आग लग रही है तो आग को भी पूरी तरह बुझा देना चाहिए। अन्यथा छोटी सी चिंगारी भी पुन: बड़ी आग में बदल सकती है और जान और माल को नुकसान पहुंचा सकती है। गरुण पुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मनोवांछित फल प्राप्त नहीं कर पाता है तो वह अज्ञानता वश क्रोधित होता है। जब व्यक्ति क्रोधित होता है तो उससे चिन्ता उत्पन्न होती है। चिंतित रहने वाले व्यक्ति के मन में काम और क्रोध अधिक बढ़ते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति कई बार अनैतिक कर्म कर सकता है। अत: हमें हर परिस्थिति में संतोषपूर्वक जीवन व्यतित करना चाहिए। जो व्यक्ति कामवासना में लिप्त रहते हैं वे स्वयं के स्वार्थों की पूर्ति के लिए अन्य कामी व्यक्ति के साथ विरोध करते हैं। ऐसे लोग दूसरों के नाश के लिए सदैव मनन करते रहते हैं। जब एक दुर्बल कामी पुरुष दूसरे बलवान कामी से बैर करता है तो वह अवश्य ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार एक हाथी छोटे-छोटे जीवों नष्ट कर देता है ठीक इसी प्रकार बलवान कामी पुरुष निर्बल कामी पुरुष के प्राणों का हरण कर लेता है। जो व्यक्ति मूर्ख होता है वह इंसानियत का नाश करने में लगा रहता है। दूसरों को अपनी मूर्खतापूर्ण बातों से ठेस पहुंचाने का प्रयत्न करता है। ऐसे मूर्ख लोग भयंकर पापी होते हैं। गरुण पुराण के अनुसार इन लोगों को युवा अवस्था में दुखों का सामना करना पड़ता है और इनका बुढ़ापा भी गंभीर बीमारियों के साथ गुजरता है। मूर्ख व्यक्ति की आत्मा देह त्याग के बाद नरक में जाती है। कई प्रकार यातनाओं को झेलने के बाद वह आत्मा पुन: धरती पर देह धारण करती है। यह चक्र अनवरत चलता रहता है। मूर्ख व्यक्ति की आत्मा को वैराग्य प्राप्त नहीं हो पाता है और ना ही ऐसे लोग भगवान की भक्ति कर पाते हैं।
Spiritual counseling for leading a spiritual way of life.
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